राज़दार
छुपा कर राज़दार ज़ख़्म सीने में
ख़ामोश रहे लब मेरे
परेशां हूँ आँखों ने सब कह ही दिया
मेरी तबाही की लकीरें थी मेरे ही हाथों में
बुझ गए मोहब्बत के चिराग मेरे हाथों से
हैरान हूँ अब परिंदों ने भी छोड़ ही दिया
शिकवा कर भी नहीं सकता तक़दीर से
दोस्त ने ही बेवफाई इलज़ाम सरे आम कर दिया
अजीब कश्मकश है
वो सामने है फिर भी ख़ामोश हैं लैब मेरे
डरता हूँ की फिर कहीं
तबाही का इलज़ाम मेरे हिस्से न आ जाये
हमने भी बड़ी शिद्दत से इश्क़ को आम कर दिया।
– प्रकाश शर्मा (भारत )