शेयरो शायरी – कुछ तुम कहो कुछ हम कहें
हद-ए-शहर से निकली तो गांव-गांव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव-पांव चली।
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो ज़िंदगी ही क्या जो छांव-छांव चली।
ए बुरे वक़त !
ज़रा अदब से पेश आ !!
वक़्त ही कितना लगता है
वक़्त बदलने में…
मिली थी ज़िंदगी, किसी के
काम आने के लिए….
पर वक़्त बीत रहा है,
कागज़ के टुकड़े कमाने के लिए…..
भारतीय स्वतंत्र दिवस की हार्दिक मंगल कामनाएं
छोड़ कर तेरी ज़मीं को दूर आ पहुंचे हैं हम
फिर भी है ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की कसम
हम जहाँ पैदा हुए उस जगह पर ही निकले दम,
तुझपे दिल कुर्बान
ऐ मेरे प्यारे वतन …
सुषमा शर्मा
कश्ती भी नहीं बदली, दरिया भी नहीं बदला,
और डूबने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला।
है शौक़-ऐ-सफ़र ऐसा, इस उम्र से यारों ने
मंज़िल भी नहीं पायी रास्ता भी नहीं बदला।
– ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
कसूर ना उनका है न मेरा,
हम दोनों ही रिश्तों की कसमें निभाते रहे।
वो दोस्ती का एहसास जताते रहे,
हम मोहब्बत को कील में छुपाते रहे।
होंठों की हंसी में गम को भुला दो,
कुछ मत कहो फिर भी लोगों को बता दो,
खुद मत रूठो तुम लोगों को हंसा दो,
जिओ और लोगों को जीना सीखा दो।
– रवि विश्वकर्मा
आदमी की औकात
एक माचिस की तिल्ली ,
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे
कुछ घंटे में राख …..
बस इतनी-सी है
“आदमी की औकात !!!!”
एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया,
अपनी सारी ज़िंदगी,
परिवार के नाम कर गया।
कहीं रोने की सुगबुगाहट,
तो कहीं फुसफुसाहट,
…. अरे जल्दी ले जाओ कौन रखेगा साडी रात ….
बस इतनी-सी है
“आदमी की औकात !!!!”
मरने के बाद नीचे देखा,
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे ……
कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ ज़बरदस्ती रो रहे थे।
नहीं रहा ……… चला गया ………
चार दिन करेंगे बात………
बस इतनी-सी है
“आदमी की औकात !!!!”
बेटा अच्छी तस्वीर बनवाएगा,
सामने अगरबत्ती जलाएगा,
खुशबूदार फूलों की माला होगी ………
अख़बार में
अश्रुपूर्ति श्रद्धांजली होगी ………
बाद में उस तस्वीर पे,
जाले भी कौन करेगा साफ़ ………
बस इतनी-सी है “आदमी की औकात !!!!”
ज़िंदगी भर,
मेरा-मेरा-मेरा किया ………
अपने लिए कम,
अपनों के लिए ज्यादा जिया ………
कोई न देगा साथ … जायेगा खली हाथ ………
क्या तिनका
ले जाने की भी
है हमारी औकात ???
‘ये है हमारी औकात’
– चंद्रकांत शर्मा
आज हम हैं कल हमारी यादें होंगी
जब हम न होंगे तब हमारी बातें होंगी
कभी पलटोगे ज़िंदगी के ये पन्ने
तब शायद आपकी आँखों से भी बरसातें होंगी
‘महेन्दर सिंह जांगरा’
ज़िंदगी की राहों में ऐसे मोड़ भी आते हैं ,
सावन के साथ-साथ यहाँ पतझड़ भी आते हैं ,
आंसू के सागर में मोती भी मिलते हैं ,
जो उन्हें ढूंढ ले वो ही ज़िंदगी जी लेते हैं।