अब किस तरह करें यक़ी
बात हम में भी कुछ है
कि एक दरिया होकर भी उसने
ख़ुद को एक बूँद बताया है
हम ने जताए हैं ज़माने से
अपने क़िस्से मामूली से
एक सितारा फ़लक का हुआ वो
और ज़र्रा बताया है
कैसे ना कह डाले ज़ुबान से
जब रूबरू हो मेरे
निगाहे शौक़ से उसने काम
बेहतर चलाया है
रहेगा बंद शीशे में उसका
दिल, धड़कने भी रहेंगी क़ाबू
ये खेल मेरा था, मात भी मेरी
कहाँ उसने कोई दाँव लगाया है
कहते रहे हैं लोग, कहते रहें
कहने में क्या हासिल
बात थी जो सबसे ज़रूरी
उस ने कर दिखाया है
न होगा मिलना मुमकिन कभी
कहा है अक्सर उस ने
ये क़ुरबत कहाँ मोहताज मिलने की
बस इतना समझ आया है
लेखिका – अम्बिका शर्मा (मोंट्रियल)