भारत टाइम्स का करैक्टर ढीला है
भाई साहिब उड़ाएं गुलछर्रे तो रासलीला है।
हम शरेआम भर लें मुस्कान तो करैक्टर ढीला है।
वो छलकाएं जाम हर इस मयखाने में,
वो लचकाएं कमर हर उस पायदान पे,
किसी ने पूछा तक नहीं, बोले समाज ‘सेवक आएला है’।
झिझकती पलकें हमारी उठीं ऊपर तो करैक्टर ढीला है।
भाई साहिब उड़ाएं गुलछर्रे तो रासलीला है।
हम शरेआम भर में मुस्कान तो करैक्टर ढीला है।
बैठें ऊपर वाले के घर, दें गाली पे गाली,
हर मर्द के हैं वो जीजा जी, हर औरत उनकी साली,
ये अनमोल रिश्ते भाई साहिब की अनमोल लीला है।
हम न दें गाली, ना रिश्ता, आज़ाद पंछी, तभी करैक्टर ढीला है।
भाई साहिब उड़ाएं गुलछर्रे तो रासलीला है।
हम थामें डोर पतंग की तो करैक्टर ढीला है।
झूठ जिनका नाम, मक्कारी उनका काम, जपें राधे-शाम,
जाम पे जाम, काम हराम, है जूआ राम,
प्यास बुझाना, प्यास लगवाना, यह उनका धंधा है।
हम सच बोलें, ईमानदारी से, तो करैक्टर ढीला है।
भाई साहिब उड़ाएं गुलछर्रे तो रासलीला है।
हम जीत गए काई-पो-चे तो भी करैक्टर ढीला है।
डा. मोनिका सपोलिया ‘मतवाली’